Section 58 of ITA, 2000 : धारा 58: अपीलीय अधिकरण की प्रक्रिया और शक्तियाँ

The Information Technology Act 2000

Summary

धारा 58 के अनुसार, अपीलीय अधिकरण प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करता है और अपनी प्रक्रिया को स्वयं विनियमित कर सकता है। इसे सिविल न्यायालय जैसी शक्तियां प्राप्त हैं जैसे गवाहों की परीक्षा, दस्तावेजों की मांग, और अपने निर्णयों की समीक्षा। अपीलीय अधिकरण की कार्यवाहियों को न्यायिक कार्यवाही माना जाता है और इसे सिविल न्यायालय के समान अधिकार प्राप्त होते हैं।

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Explanation using Example

मान लीजिए एक स्थिति जहां एक सॉफ्टवेयर कंपनी, XYZ सॉफ्टवेयर्स, उपयोगकर्ता डेटा का दुरुपयोग करने के आरोप में है। मामला सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत अपीलीय अधिकरण के समक्ष लाया जाता है। इस अधिनियम की धारा 58 के अनुसार:

(1) अपीलीय अधिकरण को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 में उल्लिखित सटीक प्रक्रिया का पालन करने की आवश्यकता नहीं है। इसके बजाय, यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए अपने नियम बना सकता है। उदाहरण के लिए, अधिकरण निर्णय कर सकता है कि सुनवाई कहाँ होगी।

(2) अधिकरण को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत सिविल न्यायालय के समान शक्तियां प्राप्त हैं। इसका मतलब है कि यह लोगों को शपथ पर बुला और परीक्षा कर सकता है, दस्तावेजों और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की पेशी का आदेश दे सकता है, शपथ पत्रों पर साक्ष्य प्राप्त कर सकता है, गवाहों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिए आदेश जारी कर सकता है, अपने स्वयं के निर्णयों की समीक्षा कर सकता है, और अनुपस्थिति के कारण आवेदन को खारिज कर सकता है या इसे एक्स-पार्टी निर्णय ले सकता है।

(3) अपीलीय अधिकरण के समक्ष कोई भी कार्यवाही न्यायिक कार्यवाही मानी जाएगी। इसका मतलब है कि झूठे साक्ष्य देने पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं 193 और 228 के तहत दंडित किया जा सकता है। अपीलीय अधिकरण को आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 195 और अध्याय XXVI के प्रयोजन के लिए भी सिविल न्यायालय माना जाता है।